मुंशी प्रेमचंद्र की कहानी बड़े भाई साहब
बड़े भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे , लेकिन केवल तीन दरजे आगे । उन्होंने भी उसी उम्र में पढ़ना शुरू किया था , जब मैंने शुरू किया ; लेकिन तालीम जैसे महत्त्व के मामले में वह जल्दीबाजी से काम लेना पसन्द न करते थे । इस भवन की बुनियाद खूब मजबूत डालना चाहते थे , जिस पर आलीशान महल बन सके । एक साल का काम दो साल में करते थे । कभी - कभी तीन साल भी लग जाते थे । बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायेदार बने ? मैं छोटा था , वह बड़े थे । मेरी उम्र नौ साल की थी , वह चौदह साल के थे । उन्हें मेरी तंबीह और निगरानी का पूरा , जन्मसिद्ध अधिकार था । और मेरी शालीनता इसी में थी कि उनके हुक्म कानून सम । वह स्वभाव से बड़े अध्ययनशील थे । हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कापी पर , कभी किताब के हाशियों पर चिड़ियों , कुत्तों , बिल्लियों की तसवीरें बनाया करते थे । कभी - कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस बीस बार लिख डालते । कभी एक शेर को बार - बार सुन्दर अक्षरों में नकल करते । कभी ऐसी शब्द - रचना करते , जिसमें न कोई अर्थ होता , न कोई सामंजस्य । मसलन एक बार उनकी कापी पर