कुम्भ मेला kumbh mela



नमस्कार हमारे ब्लॉग में आपका स्वागत हैं
आज हम आपके लिए एक नयी जानकारी लेकर आये हैं
जैसा की हम सब को पता है की इस समय प्रयागराज में कुम्भ मेला चल रहा है
तो सभी के मन में ये चल रहा होगा की आखिर ये कुम्भ मेला होता क्यों है बहुत से लोगो को पता भी होगा और बहुत से लोगो को नही पता होगा और उनके मन में यह जिज्ञासा जरूर होती होगी तो चलिए आज हम इसी पर चर्चा करते है।
ये तो सभी को पता होगा की प्रत्येक 12 वर्ष पर कुम्भ मेले का आयोजन होता है और ये चार स्थानों पर लगता है ये चार स्थान हरिद्वार
नासिक
प्रयागराज
उज्जैन
प्रत्येक 12 वर्ष में इनपर मेले का आयोजन होता है 
जैसे की इस समय 2019 में प्रयाग राज में कुम्भ मेले का आयोजन हो रहा है तो 12 वर्ष बाद ही अगला कुम्भ यहां होगा इसप्रकार एक रोटेशन में इनका आयोजन होता है
इसके अलावा प्रयाग राज मे अर्धकुम्भ का आयोजन भी होता है जो दो पूर्ण कुम्भ के बीच में 6वर्ष में होता है
आध्यत्मिक महत्व चलिये अब जानते हैं कि आखिर इस मेले के आयोजन के पीछे की कहानी क्या है

हमारे देश के विद्वानों और ज्योतिषियों के अनुसार इस मेले का आयोजन मकर संक्रान्ति के दिन सुरु होता है जिस दिन सूर्य मकर रेखा में प्रवेश करता है जब सूर्य चंदमा वृश्चिक राशि में और बृहस्पति मेष राशि में प्रवेश करता है मकर संक्रांति के इस योग को
कुम्भ स्नान योग कहते है
ऐसा माना जाता हैं कि इसदिन परमात्मा तक जाने वाले दरवाजे या स्वर्ग के दरवाजे खुले जाते है और स्नान करने वाले ब्यक्ति को बैकुंढ के पुण्य मिल जाते हैं
इसके अलावा ग्रहों के इसप्रकार के योग से हरी की पौड़ी में स्थिति जल में अमृतमय औसधीय शक्ति आ जाती है
प्रचलित कथाएँ
कुम्भ मेले की बारे कई कथाएं प्रचलित हैं जिसमे सबसे प्रचलित कथा समुद्र मंथन की कथा हैं ।
स कथा के अनुसार जब ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण देवता कमजोर हो गए तो असुरो ने उनपर आक्रमण कर दिया और उन्हें परास्त कर दिया तब सारे देवता मिलकर भगवन विश्णु के पास गए और सारा वृतांत बताये तब भगवान् ने उन्हें दानवो के साथ मिलकर छीरसागर में समुद्र मंथन करने की सलाह दी इसप्रकार देवता और दानव दोनों मिलकर अमृतमंथन करना सुरु कर दिया जैसे ही अमृत निकला वैसे ही इंद्रा के पुत्र जयंत कलस को लेकर आकाश में उड़ गए जिसके परिणाम स्वरुप दानवो ने उसका पीछा किया और बहुत मुश्किल के बाद उसे पकड़ लिया अब दोनों दानवो और देवताओं में युद्ध सुरु हो गया जो की 12 दिनों तक चला इसी युद्ध के दौरान अमृत की बुँदे पृथ्वी पर चार स्थानो (प्रयाग,हरिद्वार,उज्जैन,नासिक) में गिरी इसमें अनेक देवताओ ने घड़े  को बचाया जिसमे सूर्य चंद्र गुरु और शनि प्रमुख थे
युद्ध को खत्म करने के लिए भगवन विष्णु ने मोहनी का रूप धारण किया और देवताओं और दानवो को बराबर अमृत पान करवाया

चुकी युद्ध 12 दिनों तक चला था  और देवताओं के 12 दिन मनुष्य के 12 वर्षों के बराबर होते है 
इस प्रकार कुम्भ भी 12 होते है जिनमे 8 कुम्भ स्वर्ग में और 4 कुम्भ पृथ्वी पर होते है 
 जिस दिन अमृत कुम्भ गिरने वाली राशि में सूर्य, चन्द्रमा और बृहस्पति का संयोग हो उस समय पृथ्वी पर कुम्भ होता है ।
तात्पर्य यह है है कि राशि विशेष में सूर्य में सूर्य और चंद्रमा की स्थिति होने पर उक्त चारो स्थानों पर शुभ प्रभाव होने पर अमृत वर्षा होती हैं और और यही श्रद्धालुओं की लिए शुभ होती हैं।
इस प्रकार से वृष के गुरु में प्रयागराज ,कुम्भ के गुरु में हरिद्वार ,तुला के गुरु में उज्जैन और कर्क के गुरु में नासिक में कुम्भ होता हैं।सूर्य की स्थिति के अनुसार कुम्भ की तारीख निश्चित होती है। मकर के सूर्य में प्रयागराज, मेष के सूर्य में हरिद्वार , तुला के सूर्य में उज्जैन और कर्क के सूर्य में नाशिक का कुम्भ पर्व पड़ता है।


अथर्ववेद के अनुसार मनुष्य को सर्व सुख देने वाला कुम्भ कुम्भ प्रदान किया गया था। कुम्भ में स्नान पर्व का भी अपना महत्व व मुहूर्त होता है।संक्रांति के पूर्व व बाद की सोलह घड़ियों में पुण्यकाल माना गया है।मुहूर्त तिथि आधी रात से पहले की हो तो पहले दिन तीसरे प्रहर में पुण्यकाल बताया गया है और यदि मुहूर्त आधी रात के बाद का हो तो पुण्यकाल प्रातःकाल माना गया है।इसके अलावा मकर संक्रांति का पुण्यकाल चालीस घड़ी, कर्क संक्रांति का पुण्य कल तीस घडी और तुला और मेष का संक्रांति का पुण्यकाल बीस-बीस घडी पहले और बाद में बताया गया है


Comments

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